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karela ki kheti

करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा - करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी

करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा - करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी

करेले की खेती भारत में गर्मी और बरसात दोनों मौसम में की जाती है. करेले को शुगर के मरीजों के लिए राम बाण ओषधि बताया गया है, ये उच्च रक्तचाप वाले मरीज के लिए भी बहुत उपयोगी है. करेले को सब्जी, जूस और अचार के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. इसको काट कर सुखा लेते है जिससे की इसकी सब्जी बेमौसम भी बनाई जा सकती है. सबसे अहम बात यह है कि इसकी खेती करना आवारा पशुओं की समस्या से भी मुक्ति का एक अच्छा जरिया है। 

करेले की फसल को जंगली एवं आवारा पशु भी कड़वा होने के कारण नहीं खाते। करेले का जूस, अचार, सब्जी बहुताय में प्रयोग में लाई जाने लगी है। इसके चलते इसकी मांग भी बढ़ रही है। करेले की खेती उन ​इलाकों में भी की जा सकती है जहां अवारा पशुओं का आतंक है। करेले को पशु कड़वाहट और गंध के चलते नहीं खाते। इसकी पूसा संस्थान ने कई उन्नत किस्में विकसित की हैं।

करेले के लिए खेत की तैयारी और उपयुक्त मिटटी

करेले के खेत के लिए दोमट बलुई मिटटी बहुत उपयोगी होती है इसको भुरभुरी मिटटी में भी किया जा सकता है. इसके खेत में पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे की करेले की बेल को पर्याप्त नमी के साथ सूखे का भी होना जरूरी है.जिससे की बेल गल न जाये। इसके खेत को पहले मिटटी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके ऊपर से हेरों से जुताई करके सुहागा/ पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत का लेवल सही बना रहे।

करेले की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

जैसा की सभी फसलों के लिए सादी गोबर की खाद बहुत उपयोगी होती है तो करेला के लिए भी हमें बनी हुई गोबर की खाद को पहली जुताई के बाद खेत में अच्छे से मिला दें बाद में नाइट्रोजन और दीमक की दवा मिला दें जिससे की पौधे में रोग न लगे। फूल आने के समय इथरेल 250 पी. पी. एम. सांद्रता का उपयोग करने से मादा फूलों की संख्या अपेक्षाकृत बढ़ जाती है,और परिणामस्वरूप उपज में भी वृद्धि होती है.250 पी. पी. एम. का घोल बनाने हेतु (0.5 मी. ली.) इथरेल प्रति लीटर पानी में घोलना चाहिए करेले की फसलों को सहारा  देना अत्यंत आवश्यक है. जिससे की इसकी बेल को ऊपर चढाने में मदद मिलती है उससे इसके फल पीले नहीं पड़ते हैं.

करेले की मुख्य किस्में

ग्रीन लांग, फैजाबाद स्माल, जोनपुरी, झलारी, सुपर कटाई, सफ़ेद लांग, ऑल सीजन, हिरकारी, भाग्य सुरूचि , मेघा –एफ 1, वरून –1 पूनम, तीजारावी, अमन नं.- 24, नन्हा क्र.–13

बीज की मात्रा और नर्सरी डालने का तरीका

खेत में बनाये हुए हर थाल या बैड में चारों तरफ 4–5 बीज 2–3 से. मी. गहराई पर बो देना चाहिए। गर्मी की फसल हेतु बीज को बुवाई से पूर्व 12–18 घंटे तक पानी में रखना चाहिए इससे बीज को उगने में आसानी रहती है. पौलिथिन बैग में एक बीज/प्रति बैग ही बोते है। बीज का अंकुरण न होने पर उसी बैग में दूसरा बीज पुन बुवाई कर देना चाहिए. इन फसलों में कतार से कतार की दूरी 1.5 मीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 60 से 120 से. मी. रखना चाहिए।

करेले के कीट, रोग और उसके उपचार

रेड बीटल

यह एक हानिकारक कीट है, जो कि करेला के पौधे पर प्रारम्भिक अवस्था पर आक्रमण करता है. यह कीट पत्तियों का भक्षण कर पौधे की बढ़वार को रोक देता है। इसकी सूंडी काफी खतरनाक होती है, जोकि करेला पौधे की जड़ों को काटकर फसल को नष्ट कर देती है।

इलाज एवं रोकथाम

रेड बीटल से करेला की फसल सुरक्षा हेतु पतंजलि निम्बादी कीट रक्षक का प्रयोग अत्यन्त प्रभावकारी है. 5 लीटर कीटरक्षक को 40 लीटर पानी में मिलाकर, सप्ताह में दो बार छिड़काव करने से रेड बीटल से फसल को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

पाउडरी मिल्ड्यू रोग

यह रोग करेला पर एरीसाइफी सिकोरेसिएटम की वजह से होता है. इस कवक की वजह से करेले की बेल एंव पत्तियों पर सफेद गोलाकार जाल फैल जाते हैं, जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं। इस रोग में पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं।

घरेलू या जैविक उपचार

इस रोग से करेला की फसल को सुरक्षित रखने के लिए 5 लीटर खट्टी छाछ में 2 लीटर गौमूत्र तथा 40 लीटर पानी मिलाकर, इस गोल का छिड़काव करते रहना चाहिए। प्रति सप्ताह एक छिड़काव के हिसाब से लगातार तीन सप्ताह तक छिड़काव करने से करेले की फसल पूरी तरह सुरक्षित रहती है.रोग की रोकथाम हेतु एक एकड़ फसल के लिए 10 लीटर गौमूत्र में 4 किलोग्राम आडू पत्ते एवं 4 किलोग्राम नीम के पत्ते व 2 किलोग्राम लहसुन को उबाल कर ठण्डा कर लें, 40 लीटर पानी में इसे मिलाकर छिड़काव करने से यह रोग पूरी तरह फसल से चला जाता है।

एंथ्रेक्वनोज रोग

करेला फसल में यह रोग सबसे ज्यादा पाया जाता है. इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों पर काले धब्बे बन जाते हैं, जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण क्रिया में असमर्थ हो जाता है. फलस्वरुप पौधे का विकास पूरी पूरी तरह से नहीं हो पाता।

करेले की फसल की तुड़ाई

फसल की तुड़ाई करते समय याद रखें की फल को एकदम हरे समय पर ही तोड़ें यानि कच्चा फल ही तोड़ें जिससे की मंडी में ले जाते समय आपके फल का रंग कुदरती इतना चमकदार होगा की सबसे पहले आपके फसल को लोग तरजीह देंगें। सामान्य किस्मों में पूसा विशेष किस्म प्रति हैक्टेयर करीब 200 कुंतल उपज देकर 70 हजार का शुद्ध मुनाफा दे जाती है। 

इसके अलावा पूसा मौसमी एवं पूसा औषधि भी तकरीबन इतना ही उत्पादन देती हैं। पूसा संस्थान की शंकर किस्मों में पूूूसा हाइब्रिड 1 450 कुंतल उपज एवं 90 हजार का लाभ देती है। इसके अलावा  पूसा हाइ​ब्रिड 2550 कुंतल उपज देकर सवा लाख रुपए तक शुद्ध लाभ दे जाती है। लगाने के लिए बीजों को गीले कपड़े में भिगोकर रखें। इसके बाज प्रभावी फफूंदनाशक से उपचारित करने के बाद बोएंं। 

बीजों को नाली बनाकर उसकी मेढों पर ही लगाएं ताकि पानी लगाने पर ज्यादा खर्चा न करना पड़े। अहम बात यह है कि करेले की बेल की लम्बाई और बढ़वार को ध्यान मेें रखते हुए ही एक नाली से दूसरी नाली के बीच की दूरी तय करें।

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें करेले की खेती, होगा ज्यादा मुनाफा

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें करेले की खेती, होगा ज्यादा मुनाफा

सरकार लगातार किसानों की आय बढ़ाने पर फोकस कर रही है। जिसके तहत सब्जियों की फसल लगाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि किसनों के हाथ में नियमित रूप से पैसे आते रहें। इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। अब तो सरकार सब्जियों की खेती ले लिए किसानों को अनुदान भी उपलब्ध करवा रही है। गेहूं, चना, सरसों आदि की तुलना में सब्जियों की फसल जल्दी तैयार हो जाती है। ऐसे में उसी जमीन पर अगली फसल लगाने के लिए किसानों को समय मिल जाता है, जिससे किसान अच्छे से खेत तैयार करके किसी अन्य फसल को अपने खेत में लगा सकते हैं। वैसे तो बाजार में कई सब्जियां हैं जिनकी गर्मियों में भारी मांग रहती है। लेकिन करेले का एक अलग ही स्थान है। जिसकी खेती करके किसान भाई कम समय में अच्छा खासा लाभ काम सकते हैं। यह भी पढ़ें: करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा – करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी करेला अपने औषधीय गुणों के कारण सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली सब्जी है। यह शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान है। इसलिए डॉक्टर डायबिटीज के मरीजों को करेले का ज्यूस पीने की सलाह देते हैं। साथ ही यह शुगर कंट्रोल करने में भी सहायक होता है इसलिए डॉक्टर करेले की सब्जी खाने के लिए कहते हैं। करेला कई विटामिन और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें विटामिन ए, बी और सी की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता रहती है। इसके अलावा करेले में कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, आइरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम और मैगनीज जैसे फ्लावोन्वाइड जैसे पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। इन पोषक तत्वों के कारण यह त्वचा रोग में बेहद लाभकारी होता है। इसके सेवन से पाचन शक्ति बढ़ती है, इसलिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी उच्च होती है। मोटापा कम करने के लिए और पीलिया ठीक करने के लिए भी करेले का सेवन किया जाता है।

ऐसे करें मिट्टी का चुनाव

करेले की खेती बलुई दोमट या दोमट मिट्टी में करना चाहिए। इसके साथ ही नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी भी इसके लिए उत्तम मानी गई है। करेले के खेत में उचित जल निकास की जरूरत होती है, नहीं तो पेड़ सड़ जाएंगे। करेले को गर्मियों से साथ-साथ वर्षा ऋतु में भी उगाया जा सकता है। अगर 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होता है तो यह फसल के विकास के लिए सर्वोत्तम है। बीजों के जमाव के लिए खेत का तापमान 22 से 30 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए।

ऐसे करें खेत की तैयारी

खेत में करेले की फसल की बुवाई करने से पहले खेत की 2 से 3 बार अच्छे से जुताई कर लें। बुवाई से 20 दिन पहले 25-30 टन गोबर की खाद या कम्‍पोस्‍ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं। इसके बाद कतारबद्ध रूप से बेड बना लें। बुवाई के पहले मिट्टी के बेड के बगल से बनी नालियों में 50 किलोग्राम डीएपी, 50 किलो म्‍यूरेट आफ पोटास का मिश्रण प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। बुवाई के बाद यूरिया का भी प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए शाम का समय चुनें, ताकि उतने समय खेत में नमी बरकार रहे। बुवाई के 20 से 25 दिन के बाद 30 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं। इसके बाद करेले के पुष्‍पन व फलन के समय भी यूरिया का प्रयोग करना चाहिए। इससे पौधे को पोषण मिलता है और उत्पादन अधिक होता है।

ये हैं करेले की उन्नत किस्में

वैसे तो बाजार में करेले की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। जिनको आप बुवाई के के लिए चुन सकते हैं। इनमें कल्याणपुर बारहमासी, पूसा विशेष, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1 आदि किस्में शामिल हैं। जिन्हें किसान भाई अपने खेतों  में लगाना पसंद करते हैं।

ऐसे करें करेले की बुवाई

अब बाजार में ऐसी हाइब्रिड किस्में आ गई हैं जिससे करेले की खेती अब हर मौसम में की जाती है। आमतौर पर करेले को दो तरीकों से लगाया जाता है। पहला, खेत में सीधे बुवाई के माध्यम से और दूसरा, इसकी नर्सरी तैयार करके। नर्सरी के पौधे जब बोने लायक हो जाते हैं तब इनको खेत में स्थानांतरित कर दिया जाता है। बुवाई करने के लिए खेत में 2 फीट की दूरी पर बेड बना लें। इसके बाद बेड पर 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर बीजों की रोपाई करें। बीजों को हमेशा 2 से 2.5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। अगर करेले की पौध की रोपाई कर रहे हैं तो नाली से नाली की दूरी 2 मीटर रखनी चाहिए। साथ ही पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर और मिट्टी के बेड की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए। यह भी पढ़ें: गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer) एक एकड़ में बुवाई करने के लिए करेले के 500 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। अगर पौध के माध्यम से करेले की बुवाई करना है तो बीज की मात्रा में कमी भी की जा सकती है। बुवाई से पहले बीजों को बाविस्‍टीन के घोल में उपचारित करना चाहिए। इससे पेड़ों पर कीटों का आक्रमण नहीं होता है।

करेले की फसल की सुरक्षा और निराई गुड़ाई

करेला बेल के रूप में उगता है। ऐसे में करेले की बेल को सहारा देना जरूरी हो जाता है नहीं तो बेल खराब हो जाएगी। जब करेले का पौधा थोड़ी बड़ा हो जाए तो उसे लकड़ी या बांस का सहारा देना चाहिए। ताकि यह एक निश्चित दिशा में वृद्धि कर सके। इसके अलावा पौधे को रस्सी के सहारे से बांधा भी जा सकता है। करेले की फसल के शुरूआती समय में निराई गुड़ाई की जरूरत होती है। ऐसे में फसल की निराई गुड़ाई करें ताकि खेत में खरपतवार न पनपने पाएं। अगर शुरूआती दौर में खरपतवार पर नियंत्रण कर लेते हैं तो करेले की अच्छी फसल प्राप्त होती है।

करेले की फसल में सिंचाई

वैसे तो करेले की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। फिर भी खेत में हल्की सिंचाई करते रहें, ताकि खेत में नमी बरकरार रहे और पौधे सूखें नहीं। फूल व फल बनने की अवस्था में फसल की सिंचाई जरूर करें। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि खेत में पानी जमा न होने पाए। खेत में पानी जमा होने की स्थिति में पानी की उचित निकासी की व्यवस्था करें ताकि फसल खराब न होने पाए।

करेले की तुड़ाई

आमतौर पर करेले की फसल 60 यह 70 दिनों में तैयार हो जाती है। करेले के कठोर होने के पहले ही इसकी तुड़ाई कर लेना चाहिए। करेले को तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखें की करेले के डंठल की लंबाई 2 सेंटीमीटर से ज्यादा न हो। इससे करेले ज्यादा समय तक तरोताजा बने रहते हैं। करेले की फसल कि तुड़ाई हमेशा सुबह के समय करनी चाहिए।

करेले की फसल का उत्पादन

एक एकड़ की फसल में किसान भाई आराम से 50 से 60 क्विंटल तक करेले का उत्पादन कर सकते हैं। जबकि प्रति एकड़ इसकी खेती में मात्र 30 हजार रुपये की लागत आती है। इस हिसाब से बड़ी मात्रा में करेले की खेती करके किसान भाई ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकते हैं।